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कविता

कंचन मृग

ब्रजराज तिवारी ‘अधीर’


कंचन मृग के पीछे कितने राम,
न जाने बनबन भटके कितनी सीता हरी गईं
रावण के छल से
कितने बंधु, विभीषण बन, भेदी निकले,
कितने सोने की लंका में आग लगी,
किंतु आज तक बन से राम न लौटे,
रावण नहीं मरा,
और न बंदिनी सीता
अब तक मुक्त हो सकी,
पर सोने की लंका जल कर क्षार हो गई।

 


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